Uttar Pradesh | वैसे तो यूपी के नौकरशाहों के ठाठ और ठसक हमेशा से राजाओ सरीखे रहे हैं , इसीलिए नौकर शाह शब्द का इजाद भी हुआ था. मगर हालिया दिनों में यूपी के नौकर्षाओं की राजनीति में रूचि बढ़ी है और प्रशासनिक पारी के बाद वे राजनितिक परी शुरू करने में रूचि दिखने लगे हैं.
फिलहाल यूपी के करीब आधा दर्जन आईएस और आईपीएस अगले लोकसभा चुनावो में अपने लिए जगह खोजने में व्यस्त है. सेवानिवृत्ति के फ़ौरन बाद वे देश की संसद में प्रवेश करने की तैयारी में हैं और इसके लिए मनमाफिक पार्टियों में अपने तार जोड़ रहे हैं.
सबसे ज्यादा चर्चा सूबे में नौकरशाही के एक सबसे ताकतवर कुर्सी पर काबिज साहब की है. बीते दिनों जिस तरह से उन्होंने अपने गृह जनपद के दौरे किये हैं उसके बाद सत्ता के गलियारों में इस बाद के चर्चे तेज हो गए हैं कि वे खुद या अपने दूसरे पूर्व नौकरशाह भाई के लिए वहां सियासी जमीन तैयार करने में जुटे हैं. इन साहब को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वरदहस्त भी रहा है.
दूसरी चर्चा नौकरशाही में ऊँचा कद रखने वाले साहब की है, उनका रिटायर्मेंट भी नजदीक है और उनकी छवि सत्ता को साधने वाले खिलाडी की रही है. अपने सेवा काल का करीब ९० प्रतिशत समय लखनऊ में बिताने वाले ये साहब सत्ता संतुलन बैठने के खिलाडी माने जाते है .
इन दो आईएस अधिकारीयों के अलावा दो आईपीएस अधिकारीयों की महत्वाकांक्षा अब सामने आने लगी है. प्रदेश के डीजीपी रह चुके एक सिंह साहब ने बांदा जिले में अपनी तैयारी शुरू कर दी है और सेवा से बर्खास्त हो चुके अमिताभ ठाकुर ने बलिया संसदीय सीट से अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी है. अमिताभ ठाकुर ने तो अपनी पार्टी “अधिकार सेना” का गठन भी कर लिया है.
पूर्व नौकरशाहों की तैयारी भी कमजोर नहीं है. 1981 बीच के तेज तर्रार अधिकारी ने रिटायर्मेंट के पहले से ही खुल कर बोलना शुरू कर दिया था लेकिन बीते विधानसभा चुनावो तक वे हवा का रुख समझ रहे थे. पश्चिमी यूपी के मूल निवासी ये अधिकारी योगी सरकार पर लगातार हमले करते रहे हैं. और अब वे लोकसभा के टिकट के लिए उत्सुक हैं.
एक दुसरे क्रांतिकारी रिटायर्ड आईएएस अफसर विजय शंकर पांडे इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन अगले विधानसभा चुनावो के लिए जरुर तैयार हैं.. विजय शंकर पांडेय ने अपनी लोक गठबंधन पार्टी बनाई है.
आईपीएस की नौकरी छोड़ कर कांग्रेस का झंडा उठाने वाले कुश सौरभ ने पिछला लोकसभा चुनाव बन्स्गाओं सीट से लड़ा था और हार गए लेकिन इस बार वे फिर से चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं. एक वक्त में मायावती के बरीबी रहे रिटायर आईएएस अधिकारी राम बहादुर भी चुनाव मैदान में आयेंगे , हलाकि वे किस दल के टिकट पर लड़ेंगे इसका खुलासा वे नहीं कर रहे.
नौकरशाहों का राजनीति प्रेम नया नहीं है. लेकिन साथ ही ये भी सच है कि राजनीतिक सफलता बहुत कम लोगो को ही मिली है. यूपी के मुख्यसचिव रहे पन्ना लाल पुनिया उन बिरले अफसरों में है जिन्होंने जिस दमदारी से प्रशासन किया उसी दमदारी से राजनीति में भी अपनी जगह बनायीं.
नरेन्द्र मोदी के प्रभावी होने के बाद भाजपा ने अफसरों को टिकट देने में खूब दरियादिली दिखाई. केंद्र में हरदीप सिंह पुरी, जनरल वी के सिंह और जयशंकर सरीखे मंत्री पूर्व नौकरशाह है. बागपत से भी 2014 में संसद बनने वाले सत्यपाल सिंह आईपीएस अधिकारी थे और फिलहाल यूपी में असीम अरुण और राजेश्वर सिंह पुलिस सेवा के अधिकारी रहे हैं. असीम अरुण को तो योगी मंत्रिमंडल में जगह भी दी गयी है.
अफसरों के सियासत में आने से नेतागण परेशांन तो हैं मगर धनबाल और संपर्को के बदौलत ये अफसर बहुत आसानी से किसी भी दल से टिकट लेने में कामयाब हो जाते है.
2024 के लोकसभा चुनावो में कितने अफसर मैदान में उतारते हैं , ये देखना दिलचस्प होगा.