नई दिल्ली | इस्लामिक राष्ट्र ईरान में इन दिनों हिजाब के खिलाफ बगावत की चिंगारी सुलग रही है। ईरान जहां महिलाओं की आबादी लगभग 4 करोड़ 50 लाख है, वहाँ महिलाओं की एक बड़ी आबादी ने हिजाब के खिलाफ बगावत छेड़ दी है। वे अपने सिर से हिजाब हटाकर इस्लामी कानून के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक रही हैं। उन्होंने एलान कर दिया है कि ‘अब बहुत हुआ, हम हिजाब से सिर नहीं ढकेंगे।’
ईरान की रूढ़िवादी सत्ता इससे परेशान हो उठी है।
कहा जा रहा है कि ईरान सरकार महिलाओं की आजादी को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। लिहाजा उसने हिजाब का सख्ती से पालन करवाने के लिए सुरक्षाबलों को मैदान में उतार दिया है। साथ ही सरकारी टेलीविजन चैनलों पर भी हिजाब के पक्ष में वीडियो प्रसारण तक करवाए जा रहे हैं, ताकि महिलाओं के मन मे डर पैदा किया जा सके। गौरतलब है कि ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद नौ वर्ष से अधिक उम्र की ईरानी लड़कियों और महिलाओं के लिए सार्वजनिक रूप से हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया। हालांकि, तब भी महिलाओं ने इसका विरोध किया था, लेकिन वहां की तत्कालीन सरकार न उनका सख्ती से दमन कर दिया था।
गत दिनों ईरानी सरकार ने 12 जुलाई को ‘हिजाब और शुद्धता दिवस’ के रूप में मानने की घोषणा की। उसके बाद से वहां की महिलाओं का गुस्सा चरम पर पहुंच गया। वे इसके विरोध में सड़क पर उतर गई हैं। ईरान की महिलाओं का मकसद साफ है कि अब वे हिजाब के पीछे खुद को छुपाकर नहीं रखना चाहती हैं, बल्कि खुली हवा में आजादी की सांस लेना चाहती हैं। जो कहीं न कहीं उनका व्यक्तिगत अधिकार भी है। अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर वे सार्वजनिक क्षेत्रों में बिना हिजाब पहने अपनी आजादी को जाहिर भी कर रही हैं।
आज जब एक इस्लामिक राष्ट्र की महिलाएं हिजाब से आजादी की मांग कर रही हैं। तब दुखद है कि कट्टरपंथियों के उकसावे में आकर हमारे देश में अधिकांश मुस्लिम महिलाएं हिजाब का समर्थन करती दिख रही हैं। उनके द्वारा शिक्षण-संस्थानों में भी हिजाब पहनकर जाने की आजादी की वकालत की जा रही है। इन सबके पीछे महिलाओं की क्या मजबूरी है? यह तो वही जानें, लेकिन अगर वे समाज में अपना हैसियत बढ़ाना चाहती हैं, बराबरी का हक चाहती हैं तो उन्हें कट्टरपंथियों के बहकावे से निकलकर एक न एक दिन अपने सिर से इसे उतारना ही होगा।
महिलाएं हिजाब जैसी कुरीति का समर्थन कर रही हैं तो समझा जा सकता है कि कट्टरपंथियों की जड़ें कितनी मजबूत हैं।