नई दिल्ली | मैं गजराज नागर पिछले लगभग 36 सालों से दिल्ली में रंगमंच कर रहा रहा हूँ, 1985 के अपने शुरुआती दिनों में अभिकल्प थिएटर के साथ नाटक करना आरम्भ किया जिसके निर्देशक थे गुलशन कुमार जी। गुलशन साहब भगत सिंह कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में एक शिक्षक के रूप में भी कार्य रत रहे हैं। उनके साथ मैं चंद दिनों तक ही रहा। उसके बाद 1986 में हीरा आर्ट्स थियेटर से जुड़ कर अभिनय और रंगमंच को जाना, जिसके निर्देशक थे अजय मनचंदा जी। इनके साथ लगभग 3 साल काम किया जिसमें बैकस्टेज की बारीकियों को सीखा, लाइट, संगीत, मेकअप, पोशाक, सेट डिज़ाइन (set design), प्रॉप्स आदि के साथ एक सच्चे रंगकर्मी के गुण भी प्राप्त किये, जैसे स्क्रिप्टिंग, प्रॉम्प्टिंगऔर कलाकारों को चाय पिलाने से लेकर रिहर्सल्स (rehersals) के बाद देर रात तक रुक कर हाथों से बनाए नाटकों के पोस्टर चिपकाने तक।
3 साल उनके साथ काम करने के बाद अभिनय की यह राहें अपनी मंज़िल को खोजती YMCA रंगमंच के दरवाज़े आ पहुंची। अशोक पुरांग जी के सानिध्य में 1991 तक काम कर जीवन और रंगमंच के कई आयाम जाने।उस समय वहाँ मेरे साथ मनोज बाजपाई, अनुभव सिन्हा, मनोज वर्मा, विमल वर्मा, कुलदीप सरीन, ज्योति डोगरा, जेना, अनिल शर्मा, गोल्डी कोच्चर जैसे अनेक सेह कलाकार थे। सफ़र जारी रहा साल और 1991 में ही श्री राम सेंटर ओफ़ पर्फ़ॉर्मिंग आर्ट्स मंडी हाउस में अभिनय में चयन हुआ। श्री राम सेंटर से अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमच के तकनीकी विभाग में मेरा दाख़िला हुआ। वहाँ मैंने रंगमंच की तकनीक और मंच के बारे में बारीकी से सीखा और सीखा की रंगमंच में अभिनय के अलावा भी एक रंगकर्मी के बहुत से कार्य हैं जो महत्वपूर्ण हैं जैसे लाइट्स, पोशाक (costume) सेट डिज़ाइन (set design), मेकप (makeup), प्रोडक्शन (production) क्राफ़्ट (craft) आदि।
रंगकर्म और फिल्मों में प्रशिक्षण
क्योंकि जीवन का हमेशा से बड़ा उद्देश्य रहा है बेहतर सीखना। रंगमंच में कहानी का महत्व बड़ा है और एक रंगकर्मी की तुलना में पठ कथा ग्रंथ की तरह होती है तो मौक़ा मिला कहानी लेखन महाविद्यालय ,अंबाला जाने का। वहाँ जाकर कहानियों का प्रशिक्षण लिया और उसके पश्चात 1994 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से ही फुल टाइम समर थियेटर वर्कशॉप की। यह वर्कशॉप तीन साल के कोर्स का कैप्सूल कोर्स के रूप में आरंभ की गई थी । जैसे नाटकों का एक बाद महत्व है वैसे ही फ़िल्मों का भी बाद महत्व है, जब हमें अपनी बात ज़्यादा लोगों तक भेजनी हो तब सिनेमा एक बड़ी भूमिका अदा करती है। इसी के चलते फ़िल्म आरकाइव ओफ़ इंडीयन सिनेमा (film archive of indian cinema ) से फ़िल्म एप्रीसिएशन (film appreciation) का कोर्स किया जो की FTII की ही एक शाखा हैं जो फ़िल्मों के बारें में प्रशिक्षण देती है ।
नाटक और अन्य रचनाएँ
अभिनय और रंगमंच के साथ साथ के छोटे-छोटे लोकल अख़बारों और पत्रिकाओं में कविताएं भेजना आरंभ किया और बाद में नाट्य समीक्षाएं भी की जो उन्होंने हमेशा छापी । इसी दौरान संस्था के पाक्षिक अखबार ‘युग प्रस्थ भारती’ के संपादक के रूप मे भी कार्य किया l बतौर अभिनेता मैंने बहुत से नाटक किए जिनमें बड़ी बुआ जी, बाक़ी इतिहास , दंगा – 89, ताजमहल का टेंडर , ऑथेलो, बाय सुदामा , सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक, हानूश, तुग़लक, जूलियस सीजर, अंधा युग आदि जैसे अनेकों सुप्रसिद्ध नाटक रहे बतौर लेखक मैंने बहुत से नाटक लिखे जिनके कई सफल शो किए जो दर्शकों के दिल में अपनी जगह बना पाए – जैसे बिहार जंक्शन जो कि हरिशंकर परसाई की कहानी हम बिहार से चुनाव लड़ रहे हैं पर आधारित हैं, मंत्र मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित, the last laughter, leo tolstoy की कहानी what men live by पर आधारित रहा । कई स्वरचित नाटकों का मंचन लगातार चलता रहा जैसे बाई सुदामा, सुन रे बीरबल, the end ka band।
RAS THEATRE GROUP की स्थापना
समय का पहिया चलता रहा और 1996 रास थिएटर ग्रुप की स्थापना की जिसका मैं संस्थापक सदस्य हूँ हमारा मुख्य उद्देश्य अभिनय प्रशिक्षण, रंगमंच कार्यशालाओं का आयोजन । लोगों को जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटकों का मंचन। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय लेखकों के नाटकों का मंचन l
प्रमुख नाटकों का मंचन
हम रास थिएटर के माध्यम से लगातार 1996 से नाटकों का मंचन और अभिनय वर्क्शाप करते आ रहे हैं , अथेलो , ताज महल का टेंडर , शामल , कुछ पल के अजनबी , गधे की बारात , सुन रे बीरबल , the night that was , तेतवाल का कुत्ता , the last laughter , जैसे नाटकों का मंचन हमेशा सफ़ल रहा। बतौर रंगकर्मी दिल्ली में बहुत से विधालयों में अभिनय और रंगमंच की कार्यशालाएँ भी की।
कार्यशालाएं
रंगमंच कार्यशालाएं एवम् नाटकों का मंचन : समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं के लिए रंगमंच कार्यशालाओं का आयोजन एवम् नाटकों का मंचन। नुक्कड़ नाटक एवं स्किट प्रतियोगिताओं के लिए जज के रूप में कार्य जैसे केंद्रीय विद्यालय ,बाल भवन भारत सरकार ,एम .सी डी. दिल्ली सरकार विज्ञान मेला आदि कई संस्थाओं के लिए नाटक भी किए जैसे मानव अधिकार आयोग।
इन पुरस्कारों से किए गए सम्मानित
विशिष्ट सम्मान-1990 धर्म और रोटी नाटक के निर्देशन हेतु। पिंक सिटी अवार्ड 2008 (योसोतोरा) थिएटर और फिक्शन के क्षेत्र में योगदान हेतु। प्रशंसा सम्मान – 2012 में दिल्ली पुलिस पब्लिक स्कूल द्वारा बिहार जंक्शन नाटक के निर्देशन हेतु l नटसम्राट सम्मान – 2012 । मंत्र नाटक के निर्देशन हेतु बेस्ट प्रोडक्शन अवार्ड- 2013 नेशनल कल्चरल कार्निवाल ऑफ एस .आर .एम .यूनिवर्सिटी l बेस्ट डायरेक्टर अवॉर्ड-2014 मंच आप सबका पंचानन पाठक स्मृति नाटक समारोह द्वारा l बेस्ट डायरेक्टर अवार्ड – 2015 मंच आप सबका पंचानन पाठक स्मृति नाटक समारोह।
रेडियो धारावाहिक, चरित्रहीन – शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित रेडियो धारावाहिक का नाट्य रूपांतरण l 13 एपिसोड लिखें। निर्माता निर्देशक – दीपक ओचानी थे।
कुछ वर्षों पहले desire film and television institute की स्थापना की, राजन कपूर जी के साथ जो, अभिनय और सिनेमा में रुचि रखने वाले लोगों पर सिनेजगत की बारिकयों को लेकर काम करता हैं ।
रंगकर्म और सिनेमा से जुड़े छात्रों के लिए संदेश
रंगमंच का ये सफ़र बहुत पुराना है पर नया सा लगता है हर रोज़ कुछ नया सीखते है कुछ सीखाते हैं और ये सफ़र बतौर अभिनेता, बतौर रंगकर्मी जारी रहेगा। रंगमंच मुश्किल विधा है पर हमेशा सभागार के दर्शकों का प्यार इसे आसान बना देता है तथा आगे भी बनाता रहेगा। सभी अभिनय के छात्रों को हमेशा एक बात कहता हूँ की एक बार किया गया कर्म अपना फल दिए बिना नष्ट नहीं होता। आप कर्म करिए और आगे आगे देखिए जीवन कैसे बेहतर मोड़ लेता है, शुक्रिया ।