नई दिल्ली | तेल की बढ़ती कीमतों के कारण कजाकिस्तान में नागरिकों ने उत्पात मचा दिया है। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति निवास सहित कई सरकारी ऑफिस और नेताओं के घर में आग लगा दी। बताया जा रहा है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को भगाने के लिए गोलियां चलायीं। कजाकिस्तान के गृह मंत्रालय के मुताबिक, इस दौरान आठ पुलिस अधिकारी और नेशनल गार्ड के कुछ सदस्य मारे गए जबकि 300 से अधिक लोग घायल हो गए। आम नागरिकों में हताहत हुए लोगों का कोई भी आंकड़ा अभी तक जारी नहीं किया गया है।
नहीं पड़ा आपातकाल का कोई असर !
राष्ट्रपति कसीम-जोमार्ट टोकायव ने प्रदर्शनकारियों से कई बार शांति की अपील की। इसका असर नहीं होने पर कई कठोर कदम भी उठाए। उन्होंने दो सप्ताह के आपातकाल की घोषणा कर दी थी। इसके बाद नूर-सुल्तान की राजधानी और अल्माटी के सबसे बड़े शहर दोनों जगहों पर आपातकाल काे बढ़ाया भी गया। नाइट कर्फ्यू का भी सख्ती के साथ पालन कराया गया। इसके बाद भी प्रदर्शनकारी नियंत्रित नहीं हुए। बाद में वहां की सरकार को इस्तीफा दे देना पड़ा. बताया जा रहा है कि कजाकिस्तान में इंटरनेट पर भी रोक लगा दिया गया है। इस कारण लोगों को किसी तरह का कोई समाचार नहीं मिल रहा है। वैश्विक निगरानी संगठन नेटब्लॉक्स ने कहा कि देश व्यापक इंटरनेट ब्लैकआउट का अनुभव कर रहा है। रूसी समाचार एजेंसी तास ने बताया कि अल्माटी में बृहस्पतिवार तड़के इंटरनेट सेवा बहाल कर दी गई।
तेल के दाम हुए दोगुने
वहां गाड़ियों में ईंधन के रूप में प्रयोग की जाने वाली पेट्रोलियम गैस की कीमतों के लगभग दोगुने होने के विराेध में प्रदर्शन शुरू हुआ था। टोकायव ने दावा किया कि इस प्रर्दशन का नेतृत्व ”आतंकवादी बैंड” कर रहे थे, जिन्हें अन्य देशों से मदद मिलती है। उन्होंने यह भी कहा कि अल्माटी के हवाई अड्डे पर हमले में दंगाइयों ने पांच विमानों को जब्त कर लिया था, लेकिन उप महापौर ने बाद में कहा कि हवाई अड्डे को दंगाइयों से मुक्त करा लिया गया और वहां सामान्य रूप से कामकाज हो रहा है। कजाकिस्तान, दुनिया का नौवां सबसे बड़ा देश है। इसकी सीमाएं उत्तर में रूस और पूर्व में चीन से लगती हैं और इसके पास व्यापक तेल भंडार है जो इसे रणनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है। तेल के भंडार और खनिज संपदा के बावजूद देश के कुछ हिस्सों में लोग खराब हालत में रहने को मजबूर हैं जिसके कारण लोगों में असंतोष है। वर्ष 1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद कजाकिस्तान में एक ही पार्टी का शासन रहा है और इसकी वजह से भी लोगों में असंतोष है।