नई दिल्ली | जॉम्बी कंपनियां बैंकों के साथ-साथ देश की इकोनॉमी को भी नुकसान पहुंचा रही हैं. कंपनियों को बैंकों से मिल रहे कुल कर्ज का 10 फीसदी हिस्सा इस तरह की कंपनियों में खप जा रहा है. यहां तक कि नॉन-फाइनेंशियल कॉरपोरेट सेक्टर में भी ये कंपनियां कुल कर्ज का 10 फीसदी हिस्सा एब्जॉर्ब कर रही हैं. आरबीआई (RBI) के ताजा मंथली बुलेटिन में ये जानकारी सामने आई है.
इकोनॉमी पर इन कंपनियों से बढ़ता है बोझ
जॉम्बी फर्म वैसी कंपनियों को कहा जाता है, जो लगातार घाटे में चल रही होती हैं. बावजूद इसके ये कंपनियां कर्ज लेने में कामयाब हो जाती हैं. हर महीने जारी होने वाले रिजर्व बैंक के बुलेटिन के फरवरी इश्यू में कहा गया है कि ऐसी कंपनियां लगातार कई साल से एसेट पर निगेटिव रिटर्न देती आ रही हैं. ये नया निवेश करने के बजाय सर्वाइव करने के लिए कर्ज पर कर्ज उठाती हैं. रिजर्व बैंक ने कहा कि नॉन-जॉम्बी कंपनियों को लोन देने पर इन्वेस्टमेंट की गतिविधियों में सुधार आता है, लेकिन जॉम्बी कंपनियों को लोन देने से इस तरह का कोई लाभ नहीं होता है, जो अंतत: इकोनॉमी के लिए बोझ का काम करता है.
बैड लोन पर सख्त है सेंट्रल बैंक का रवैया
रिजर्व बैंक ने बुलेटिन में ये बातें ऐसे समय की है, जब बैंक खासकर सरकारी बैड लोन की समस्या से जूझ रहे हैं. सेंट्रल बैंक ने इस समस्या को देखते हुए 2015 से एसेट क्वालिटी का रिव्यू करना शुरू कर दिया. लिहाजा बैंकों को या तो इन्सॉल्वेन्सी प्रोसेस का सहारा लेना पड़ रहा है, या वे ऐसे बैड लोन को एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों को डिस्काउंट पर बेच रहे हैं. इसने बैंकों को बैलेंस शीट साफ करने में मदद की है.
कर्ज को यहां खपा रही जॉम्बी कंपनियां
बुलेटिन में कहा गया है कि रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति से इकोनॉमी को सहारा देने के जो उपाय किए हैं, जॉम्बी कंपनियों के कारण उन उपायों का असर कम हुआ है. ऐसी कंपनियों को बैंकों से मिले कर्ज से इन्वेस्टमेंट एक्टिविटी की सेंसिटिविटी लो रहने का अनुमान है. इसका अर्थ हुआ कि इन कंपनियों ने बैंकों से मिले कर्ज का इस्तेमाल कारोबार को बढ़ाने के लिए नहीं किया, बल्कि उनका सारा फोकस इस बात पर रहा कि वे किसी तरह से ऑपरेशनल बनी रहें।