उत्तर प्रदेश | सरकारी हेलिकॉप्टर कंपनी पवन हंस आर्थिक संकट की वजह से अब पतन की ओर बढ़ रही है। वित्तीय संकट के चलते ये कंपनी अब बिकने को तैयार है। वित्तीय संकट से जूझ रही देश की इस इकलौती सरकारी हेलिकॉप्टर सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के विनिवेश के लिए सरकार ने EOI आमंत्रित किये हैं।
कुछ दिनों पहले JSW स्टील लिमिटेड के पवन हंस को खरीदने की खबरें ज़ोर पकड़ रहीं थीं मगर JSW स्टील ने ऐसी सभी ख़बरों को सिरे से खारिज कर दिया।
सालों से घाटे में चल रही कंपनी
2018-2019 में इस तीन दशक पुरानी कंपनी को 69 करोड़ का घाटा हुआ था। इसी के अगले साल इस कंपनी को करीब 28 करोड़ रूपए का नुक्सान हुआ था। घाटे की वजह से सरकार ने 2018 पवन हंस से अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया, लेकिन जब ONGC ने भी अपनी हिस्सेदारी बेचने को कहा तब सरकार पीछे हट गई. पवन हंस में सरकार की 51% हिस्सेदारी है वहीं ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) के पास 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
2019 में कंपनी को बेचने की एक और बार कोशिश की गई, लेकिन किसी निवेशक ने इसे खरीदने में रूचि नहीं दिखाई.
तीन दशक से ज्यादा वक्त से काम कर रही है कंपनी
पवन हंस की स्थापना 1985 में हुई थी, इसमें करीब 40 से अधिक हेलीकॉप्टर हैं, इस कंपनी में 900 से अधिक स्टाफ काम करता, यह कंपनी भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएं देती है. पवन हंस ने ONGC के कामों के लिए सर्विस देने की शुरुआत की थी. 1986 में पवन हंस ने ओएनजीसी के लिए कमर्शियल उड़ान शुरू किया था.
ये कंपनी सरकारी कामों के लिए भी हेलिकॉप्टर सेवा देती है. आपदा प्रबंधन, राहत और बचाव के कामों में भी ये सर्विस देता है. चार धाम यात्रा के लिए भी पवन हंस हेलिकॉप्टर सर्विस देता है. वैष्णो देवी यात्रा के लिए भी यही सर्विस प्रोवाइड करता है.
हादसों के लिए भी बदनाम पवन हंस
पवन हंस का पहला हेलिकॉप्टर पहली बार 1988 में हादसे का शिकार हुआ था, जब वैष्णो देवी में दर्शन के लिए जा रहे 2 पायलट समेत 8 लोगों की जान चली गई थी. पवन हंस के तीन दशक के इतिहास में हादसे की वजह से 90 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दोरजी खांडू की मौत भी पवन हंस के हेलिकॉप्टर में हुई थी. करीब 96 घंटे तक चले तलाशी अभियान के बाद में मलबा पाया गया था..उस वक्त भी इसकी सर्विस को लेकर सवाल उठे थे.