उत्तराखंड | बाहरी लोगों को लेकर उत्तराखंड में प्रशासन सख्त होता दिखा तो हाईकोर्ट की ओर से भी इन्हे कॉपी राहत नहीं मिल रही। घोडा स्टैंड पर 5 मई को हुई अतिक्रमण विरोध कार्रवाई के बाद हाईकोर्ट ने भी यहां कथित अतिक्रमणकारी की याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने ऐसे मामलों में कार्रवाई के पहले नोटिस दिए जाने के ज़रूरी न होने की बात कही। हालाँकि, अब वकील इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।
उधर हाईकोर्ट के संज्ञान लेने पर मेट्रोपोल मामले में भी एक याचिका कोर्ट में दाखिल हुई है, जिस पर मंगलवार या बुधवार को सुनवाई हो सकती है। इस याचिका में कहा गया है कि उनको शत्रु संपत्ति से बेदखल ना किया जाए। दरअसल कमिश्नर के दौरे के बाद जिला प्रशासन ने मुनादी कराकर 5 मई को अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाया था, जिसमें कई लोगों के अवैध मकान – दुकानों को प्रशासन ने सरकारी जमीनों से हटा दिया।
अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई के बाद मोहम्मद अब्दुल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि वो अपने दादा के जमाने से नैनीताल में रह रहे हैं और 20 सालों से घोड़ा स्टैंड के पास चाय की दुकान चला रहे हैं। लेकिन उन पर बिना कोई नोटिस के कार्रवाई कर दी गई। याचिका में कहा गया कि उनको बिना सुने और बिना नोटिस के की गई कार्रवाई गलत है।
इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने कहा कि उनके कई सालों से यहीं रहने के बावजूद भी उन्हें रोहिंग्या या बांग्लादेशी कहा जाता है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस मामले में मोहम्मद अब्दुल को राहत देने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसे मामलों में नोटिस देने की जरूरत नहीं है।
इस मामले के वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने कहा कि एकलपीठ में याचिका खारिज होने के बाद डबल बेंच में याचिका दाखिल की जाएगी। वहीं वकील नितिन कार्की ने कहा कि हाईकोर्ट का निर्णय एकदम सही है और जो लोग नैनीताल आकर सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा कर रहे हैं, उन्हें खुद ही अवैध कब्जों को छोड़ देना चाहिये।