प्रमुख आर्य समाजी स्व. चौधरी मित्रसेन आर्य की स्मृति में गांव खांडाखेड़ी में बनाए गए भारत मित्र स्तंभ का लोकार्पण करने के लिए बृहस्पतिवार को आए आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने पुरानी शिक्षा नीति पर निशाना साधा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री डॉ. सुकामा ने की और उत्तर प्रदेश आरएसएस के संघचालक प्रो. सीताराम व्यास, हरियाणा आरएसएस के संघचालक पवन जिंदल विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे, वहीं बाबा रामदेव व कैप्टन अभिमन्यु के अलावा कृषि मंत्री जेपी दलाल, डिप्टी स्पीकरण रणबीर गंगवा, सांसद बृजेंद्र सिंह, धर्मबीर सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राजस्थान के लक्ष्मणगढ़ विधानसभा के प्रत्याशी सुभाष महरिया, सुभाष बराला, भाजपा प्रदेश प्रभारी बिप्लब देब, प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ आदि भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में स्वामी रामदेव ने चौधरी मित्रसेन की स्मृति में ग्रंथ का विमोचन किया गया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत मित्र स्तंभ में उपलब्ध करवाई गई जानकारी से हमें पता चलता है कि सृष्टि उत्पति से आज तक हम भारत के लोग कौन हैं। उन्होंने कहा कि हम भारत के लोग कौन हैं, इसका परिचय हमारी परंपरा और रीतियों से मिलता है। इसका आभास होने के बाद ही हम अपने पूर्वजों की तरह बनेंगे लेकिन दुर्भाग्य से यह शिक्षा पुरानी शिक्षा नीति के तहत चलने वाले विद्यालयों में नहीं दी जाती थी, सिर्फ गुरुकुल, विद्या भारती के स्कूलों व संघ की शाखाओं में दी जाती है। नई शिक्षा नीति में इसको कितना शामिल किया जाएगा, यह देखा जाएगा लेकिन पुरानी शिक्षा नीति में यह बिल्कुल नहीं था। उन्होंने कहा कि यदि हमें यह पता हो कि हम पराक्रमी पूर्वजों की संतान हैं तो हम पराक्रमी बनेंगे और यह पता चलता है कि हमारे पूर्वजों ने मार ही खाई है तो हम भी मार ही खाएंगे। उन्होंने कहा कि आर्य कोई मनुष्य नहीं था बल्कि आर्य एक संस्कृति है जिसको ग्रहण करके हम वास्तव में मनुष्य बनते हैं।
उन्होंने कहा कि बाहर की दुनिया को जानो, उसका उपयोग अपने जीवन को सुखी व सार्थक बनाने के लिए करो। अध्यात्म का अभ्यास करो, सत्य को जानो और उसको जानकार मृत्यु पर विजय प्राप्त करो और अमृत्व को प्राप्त करो।
उन्होंने कहा कि पश्चिम में उन लोगों की कहानियां मिलती है जिन्होंने खूब कमाया या जिन्होंने शासन किया लेकिन हमारे यहां पर उस राजा की कहानी आज भी आठ हजार साल से चल रही है जिस ने पितृवचन पालन करते हुए 14 वर्ष खुशी से वनवास स्वीकार किया। हमारे यहां कमाने वाला नहीं बल्कि बांटने वाला बड़ा होता है। जीवन का यश नहीं बल्कि जीवन का सार्थकत्व महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि आज पर्यावरण हानि हो रही है और सभी को पता है कि यह क्यों हो रही है लेकिन जिसके कारण यह हानि हो रही है, उसको छोड़ नहीं सकते। आज परिवार टूट रहे हैं और अपराध बढ़ रहे हैं और सारा जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। कलयुग है लेकिन कलयुग में भी भारत का जीवन बहुत अच्छा है। हमारे यहां परिवार टूटते नहीं बल्कि जुड़ते हैं। उन्होंने आह्वान किया कि यह हमारे सोने का समय नहीं बल्कि जागृत रहने का समय है। एक-एक घर में हमको नीति व संस्कारों की शिक्षा देनी होगी। आज नई पीढ़ी से बात नहीं नहीं होती। मोबाइल में देखते रहते हैं। हमको यह बात करनी पड़ेगी और इस स्तंभ की यात्रा करानी होगी।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि आज के समय में संयुक्त परिवार मिलना व परिवार को संयुक्त रखना बहुत बड़ी बात है, लेकिन मित्रसेन के परिवार में हमें यह सब देखने को मिल जाता है। उन्होंने कहा कि बड़ी माता परमेश्वरी देवी व छोटी माता सरोज ने पूरे परिवार को जोड़कर रखा है, वह सराहनीय है।