उत्तर प्रदेश की जनता ने एक एक बार फिर भाजपा को पूर्ण अहमत देकर सरकार और प्रदेश चलाने का मौका दिया।
ये नतीजे ((Uttar Pradesh Election Result) अपने साथ लाये हैं यूपी की राजनीति में BSP और कांग्रेस के साफ होने की कहानी तो कुछ ही सालों में निषाद पार्टी जैसे छोटे दलों के छा जाने का फसाना। इन नतीजों में हम निषाद पार्टी के सिरमौर संजय निषाद के लिए राजनीतिक अर्थ खोजने की कोशिश करते हैं।
यूपी चुनाव 2022 में निषाद पार्टी का प्रदर्शन
पहली बार अपने चुनाव चिह्न पर 10 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी निषाद पार्टी ने उनमें से छह सीटों पर जीत हासिल की है. साथ ही 6 सीटों पर निषाद पार्टी के उम्मीदवार बीजेपी के सिंबल पर चुनाव में उतरे थे और उनमे से 5 सीट जीतने में कामयाब रहे. यानी असल में 16 सीटों में से निषाद पार्टी ने 11 पर जीत हासिल की।
निषाद पार्टी के सिंबल पर जीतने वाले उम्मीदवार
विपुल दुबे- ज्ञानपुर विधानसभा सीट
डॉ बिनोद बिंद- मझवान विधानसभा सीट
अनिल त्रिपाठी- मेहदावल विधानसभा सीट
ऋषि त्रिपाठी- नौतनवां विधानसभा सीट
विवेक पांडे- खड्डा विधानसभा सीट
रमेश सिंह- शाहगंज विधानसभा सीट
बीजेपी के सिंबल पर जीतने वाले उम्मीदवार
सरवन निषाद (संजय निषाद के बेटे)- चौरीचौरा विधानसभा सीट
पीयूष रंजन निषाद- करछना विधानसभा सीट
केतकी सिंह- बांसडीह विधानसभा सीट
राजबाबू उपाध्याय- सुल्तानपुर सदर विधानसभा सीट
डॉ असीम रॉय- तमकुहीराज विधानसभा सीट
पार्टी के इस शानदार प्रदर्शन ने अध्यक्ष संजय निषाद का राजनैतिक कद बढ़ा दिया है। इस जीत के मायने समझने के लिए कांग्रेस और बसपा के प्रदर्शन को देख क्र भी किया जा सकता है। यूपी में 2007 में 206 सीटों पर जीतकर मुख्यमंत्री बनने वाली मायावती की पार्टी BSP न इ इस बार एक सीट पर जीत दर्ज की है वहीँ देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस सिर्फ 2 सीटों पर जीत का मुँह देख पायी।
2017 में दी थी बीजेपी को उसके ही गढ़ में मात
निषाद पार्टी ने 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी, अपना दल और जन अधिकार पार्टी के साथ गठबंधन किया था और 100 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। लेकिन तब उसे सिर्फ भदोही के ज्ञानपुर सीट पर जीत हासिल हुई थी।
लेकिन यह तस्वीर 2018 में बदल गयी। 2018 में गोरखपुर शहर के लोकसभा उपचुनाव में, निषाद पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया और यूपी के राजनीतिक क्षेत्र में अपना लोहा मनवाते हुए बीजेपी को धूल चटा दी। विजयी उम्मीदवार थे प्रवीण कुमार निषाद जो संजय निषाद के बड़े बेटे हैं।
हालांकि, एक साल बाद ही समाजवादी पार्टी से गठबंधन टूट गया और 2019 के लोकसभा चुनाव में संजय निषाद ने बीजेपी से हाथ मिला लिया. इस बार उनके बेटे प्रवीण कुमार बीजेपी के टिकट पर संत कबीर नगर संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतरे और जीत हासिल की।
चुनौतियों के बीच निषाद पार्टी ने दिखाया दम
गठबंधन की सहयोगी बीजेपी द्वारा निषाद पार्टी को दी गई सीटों को जीतना मुश्किल माना जा रहा था. दूसरी चुनौती थी की समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस सहित कई दल ने भी निषाद समुदाय के उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर निषाद जाति के वोटर्स को अपने पाले में करने की कोशिश की थी, जो पार्टी के वोट बैंक के लिए एक गंभीर चुनौती थी।
तीसरी चुनौती थी कि विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), प्रगतिशील मानव समाज पार्टी (पीएमएसपी) और सर्वहारा विकास पार्टी (एसएसपी) जैसी अपेक्षाकृत छोटी पार्टियां भी निषाद पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में थी.
बावजूद इनके 2022 के इस विधानसभा चुनाव में संजय निषाद की पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए उनका कद बड़ा कर दिया है. यह जरूर है कि बीजेपी ने अकेले ही आसानी से बहुमत का आंकड़ा पार किया है लेकिन बीजेपी आलाकमान भी जानती है कि निषाद पार्टी पूर्वांचल में उसे जातीय समीकरण को अपने पाले में करने का सही मौका देती है.
तीसरी और सबसे बड़ी चुनौती थी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), प्रगतिशील मानव समाज पार्टी (पीएमएसपी) और सर्वहारा विकास पार्टी (एसएसपी) जैसी अपेक्षाकृत छोटी पार्टियां भी निषाद पार्टी के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहती थी। BJP ने चाहे अपने दम पर बड़ी आसानी से बहुमत हासिल कऱ लिया हो लेकिन को जानती है पूर्वांचल के जातीय समीकरण को साधने के लिए निषाद पार्टी से गठबंधन भविष्य में भी फायदेमंद साबित होगा।