नई दिल्ली | असम स्थित सोनपुर शहर के एक घर में बिस्तर पर लेते और बोलने में असमर्थ 72 वर्षीय एक डॉक्टर की सहयोगी रूपा ने उन्हें अमेरिका में इंसान के शरीर में सूअर का दिल लगाए जाने के बारे में बताया तो वो बस मुस्कुरा दिए।
शायद उन्हें 25 साल पुराना वो किस्सा याद आ गया, जब उन्होंने भी ऐसा ही एक्सपेरिमेंट किया था।
सूअर का दिल इंसान में लगाने वाला भारतीय डॉक्टर !
1995 के दौर में असम के रहने वाले डॉक्टर धनी राम बरुआ देश भर में टॉप कार्डियोलॉजी डॉक्टर के तौर पर पहचान बना चुके थे। सिर्फ असम ही नहीं देश और दुनिया भर के हार्ट मरीज बरुआ के पास पहुंचते थे। सोनपुर में डॉक्टर बरुआ हार्ट इंस्टीट्यूट चलाया करते थे। उनके इंस्टीट्यूट का नाम धनी राम बरुआ इंस्टीट्यूट था। कैंसर समेत कई दूसरी बड़ी बीमारियों पर जेनेटिक साइंस के क्षेत्र में की गई उनकी रिसर्च को दुनिया भर में सराहा गया है।
किन परिस्तिथियों में डॉक्टर ने किया ये अनोखा experiment !
25 साल पहले असम के धनी राम बरुआ हार्ट इंस्टीट्यूट में एक मरीज को भर्ती किया गया था। इस 32 साल के मरीज की स्थिति काफी गंभीर थी। डॉक्टर बरुआ के पास मरीज को बचाने के लिए उसके शरीर में सूअर का हार्ट ट्रांसप्लांट करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।
ऐसे में चीन के हांग कांग स्थित एक डॉक्टर जोनाथ हो की-शिंग के साथ मिलकर बरुआ ने इस ट्रांसप्लांट को अंजाम देने का फैसला किया। इसके बाद दोनों डॉक्टरों ने मिलकर सोनपुर में स्थित इंस्टीट्यूट में मरीज के शरीर में सूअर का दिल लगाया था।
डॉक्टर बरुआ और जोनाथ के प्रयासों के बावजूद नहीं बच सका मरीज़, डॉक्टर को जाना पड़ा जेल
डॉक्टर धनी राम बरुआ और हांग कांग के डॉक्टर जोनाथ हो की-शिंग दोनों ने सफलता पूर्वक मरीज के शरीर में सूअर का हार्ट ट्रांसप्लांट किया था। इस पूरे प्रोसेस को अंजाम देने में डॉक्टर बरुआ और डॉक्टर जोनाथ को 15 घंटे का समय लगा था। इस हार्ट ट्रांसप्लांट को किए जाने के करीब एक सप्ताह बाद ही मरीज के शरीर में कई इंफेक्शन हो गए। इस रिसर्च का नतीजा यह हुआ कि अच्छे उद्देश्य के बावजूद मरीज को नहीं बचाया जा सका।
इस घटना के बाद असम सरकार ने जांच के लिए एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने अपनी जांच में पाया कि दोनों डॉक्टरों ने इस हार्ट ट्रांसप्लांट से पहले किसी तरह की सरकारी अनुमति नहीं ली थी। डॉक्टर बरुआ के संस्थान ने हार्ट ट्रांसप्लांट से जुड़े कानून को भी नजरअंदाज किया था।
ऐसे में दोनों डॉक्टरों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 और इंसानी शरीर में हार्ट प्रत्यारोपन कानून 1994 के सेक्शन 18 के तहत केस दर्ज किया था।
गिरफ्तार किए जाने के करीब 40 दिन बाद दोनों डॉक्टरों को बेल पर छोड़ दिया गया।
इंदिरा गाँधी ने डॉक्टर से की हार्ट लैब खोलने की अपील
इस विवाद से पहले साल 1980 में खुद देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और असम के सीएम हितेश्वर सैकिया ने डॉक्टर बरुआ को हार्ट ट्रांसप्लांट लैब खोलने के लिए निमंत्रण दिया था। इसके बाद सबसे पहले 1989 में डॉक्टर बरुआ ने मुंबई में एक हार्ट वाल्व फैक्ट्री स्थापित की।
हालांकि, इसके कुछ वक़्त बाद ही सोनपुर में भी डॉक्टर बरुआ ने एक हार्ट ट्रांसप्लांट इंस्टीट्यूट शुरू किया। इसी इंस्टीट्यूट में 1997 में सूअर का हार्ट इंसान में ट्रांसप्लांट किया गया था, जिसके बाद विवाद हुआ।