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सालभर के इंतजार के बाद राजधानी देहरादून में लग रहा झंडे जी का मेला, 350 साल पुराना है इतिहास हर साल होली के बाद चैत्र मास में लगने वाला झंडे जी का मेला उत्तर भारत का सबसे विशाल मेला माना जाता है

देहरादून. हर साल की तरह इस बार भी राजधानी देहरादून में झंडे जी का मेला लग चुका है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंच रहे हैं. मेले में कई तरह का सामान आपको सस्ते दामों पर मिल जाता है. हर साल होली के बाद चैत्र मास में लगने वाला झंडे जी का मेला उत्तर भारत का सबसे विशाल मेला माना जाता है क्योंकि यहां हजारों लाखों की संख्या में दूसरे राज्यों से संगत पहुंचती है.

बताते चलें कि झंडा मेला बसंत के मौसम में लगाया जाता है. गुरु राम राय द्वारा प्रवर्तित उदासी संप्रदाय के अनुयाई सिखों का प्रमुख धार्मिक उत्सव माना जाता है. इस मेले में न सिर्फ उत्तराखंड के लोग शामिल होते हैं बल्कि उत्तर भारत जिनमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के सिख अनुयायी शामिल होने के लिए आते हैं.

क्या है मेले की कहानी
मान्यता है कि देहरादून को बसाने वाले गुरु राम राय ने देहरादून के खुदबुड़ा क्षेत्र में अपने साथियों के साथ डेरा डाला था. उसी से देहरादून के नाम की कहानी भी जुड़ी है. यही वह वक्त था जब औरंगजेब ने गढ़वाल के शासक राजा फतेहशाह को एक संस्तुति पत्र देकर देहरादून के तीन गांव अमासूरी, राजपुरा और खुडबुड़ा की जागीर दी थी.

 ऐतिहासिक परंपरा
रंजीत सिंह ने बताया कि साल 1694 की बात है, जब गुरु राम राय ने यहां गुरुद्वारा स्थापित कर पहली बार झंडा फहराया था. तब से लेकर अब तक हर साल होली के बाद यहां यह ऐतिहासिक गौरवशाली परंपरा मनाई जाती है और भाईचारे व प्रेम के प्रतीक के रूप में झंडे जी को फहराया जाता है. तभी से देहरादून के झंडे मोहल्ले में झन्डे जी का मेला लगता है.

जुलूस निकालकर मेले का आगाज़
उन्होंने आगे कहा कि वर्षों से चली आ रही मान्यता के मुताबिक मेले का आगाज महंत की अगुवाई में जुलूस निकालकर किया जाता है और हर तीन वर्षों के बाद दरबार साहिब के प्रांगण में फहराया गए पुराने झंडे की जगह नागसिद्ध के जंगल से काटकर लाए गए खंभे को लगाया जाता है और उसकी पूजा करने के बाद नया झंडा फहराया जाता है. इस दौरान पूरा गुरु राम दरबार साहिब जयजयकार के नारों से गूंज उठता है. इस वर्ष 25000 से ज्यादा संगत झंडे जी के मेले के लिए देहरादून पहुंच चुकी है. इसके अलावा विदेश से भी लोग यहां मत्था टेकने और इस मेले में शामिल होने आए हैं.करतार सिंह ने बताया कि उनके पूर्वज पाकिस्तान में रहते थे. वह वहां से इस मेले में यहां आते थे. अब हम पंजाब से यहां हर साल आते हैं.

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