उत्तर प्रदेश | कभी उत्तर प्रदेश की सियासत में एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस अब इस बुरी स्थिति में पहुंच चुकी है कि यहां विधान परिषद में अब उसका कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं बचेगा। ब्रिटिश राज के दौरान वर्ष 1935 में स्थापित विधानपरिषद में फिलहाल कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह बचे हैं। हालांकि इसका कार्यकाल भी इस साल जुलाई में समाप्त हो रहा है, जिसके बाद यूपी के उच्च सदन में कांग्रेस की राय रखने के लिए कोई एमएलसी नहीं बचेगा।
यूपी विधान परिषद में निर्धारित कुल 100 सीटों में 36 स्थानीय निकाय से, 36 विधानसभा कोटे और 12 राज्यपाल कोटे से चुनकर आते हैं। इसके अलावा स्नातक और शिक्षक कोटे से 8-8 एमएलसी चुने जाते हैं। यहां बीजेपी स्थानीय निकाय की 36 एमएलसी सीटों में से 33 सीटें जीतकर 66 पर पहुंच गई है। वहीं, सपा के 17 एमएलसी, बसपा के पास 4, कांग्रेस के 1, निषाद पार्टी के 1, अपना दल (एस) के 1, जनसत्ता पार्टी के 1, शिक्षक दल के 2, निर्दल समूह के 1 और 3 निर्दलीय एमएलसी हैं। इसके अलावा 3 सीटें खाली हैं।
विधान परिषद के रिकॉर्ड के मुताबिक, सदन के 15 सदस्य अगले कुछ महीनों में रिटायर होने वाले हैं। इनमें से नौ सदस्य सपा के, तीन बसपा के, दो बीजेपी के और एक कांग्रेस सदस्य शामिल हैं। कांग्रेस के साथ बसपा के तीन एमएलसी का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही उच्च सदन में भीमराव अंबेडकर के रूप में इस पार्टी का बस एक ही प्रतिनिधि बचेगा।
बता दें कि ब्रिटिश हुकूमत ने भारत शासन अधिनियम 1935 के द्वारा संयुक्त प्रांत विधान परिषद की स्थापना की थी। तब उत्तर प्रदेश का नाम संयुक्त प्रांत था और यहां विधानसभा परिषद में कुल 60 सदस्य हुआ करते थे। इसके बाद वर्ष 1950 में इसे यूपी विधान परिषद बना दिया गया।
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि राज्य में कांग्रेस की ऐसी खराब हालत पहले कभी नहीं रही। वहीं यूपी के हालिया विधानसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन से मुरझाए कांग्रेस कार्यकर्ताओं में इस घटनाक्रम से मायूसी की एक और लहर छाने की आशंका है।